दोस्तों स्टॉक मार्केट में हम मुख्यतः किसी स्टॉक की एनालिसिस दो तरह से करते है: फंडामेंटल एनालिसिस और टेक्निकल एनालिसिस। फंडामेंटल एनालिसिस में हम किसी कंपनी के फाइनेंसियल हेल्थ को चेक करते है, जिसमें उसके इनकम स्टेटमेन्ट, बैलेंस शीट, कैश फ्लो और विभिन्न रेशियों को जांचा परखा जाता है। फंडामेंटल एनालिसिस को अधिकतर लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट में उपयोग किया जाता है। लेकिन शॉर्ट टर्म या ट्रेडिंग में इसे उपयोग नहीं कर सकते है। किसी स्टॉक, कमोडिटी, इंडेक्स या करेंसी आदि में ट्रेडिंग के लिए ट्रेडर टेक्निकल एनालिसिस का उपयोग करते है। इस पोस्ट में जानेंगे कि टेक्निकल एनालिसिस (Technical Analysis) क्या है? इसे कैसे उपयोग करें? इस पोस्ट को पढ़ने के बाद इनके बेसिक्स क्लीयर हो जायेंगे।
टेक्निकल एनालिसिस (Technical Analysis) क्या है?
टेक्निकल एनालिसिस एक मैप की तरह काम करते है। जैसे आप अपने घर से कार लेकर मुम्बई जाने में लिए निकल जाते है, लेकिन रास्ते का पता नहीं है, तो आप भटक सकते है, गुम हो सकते है या गलत रास्ते पर जा सकते है। इसी तरह स्टॉक मार्केट में बिना टेक्निकल नॉलेज के जब आप स्टॉक्स या इंडेक्स में ट्रेड करते है तो ये अंधेरे में तीर चलाने जैसा काम होगा। हो सकता है कई बार आप सफल भी हो जाये लेकिन ये सफलता स्थायी नहीं रहेगी। इसलिए स्टॉक मार्केट में शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के लिए टेक्निकल एनालिसिस का ज्ञान और अभ्सास बहुत जरूरी है, तभी हम कंसिस्टेंट प्रॉफिट कमा सकते है।
याद रखे स्टॉक मार्केट में टेक्निकल एनालिसिस को जाने बिना ट्रेडिंग करना वैसे है जैसे किसी युद्ध में बिना अस्त्र शस्त्र के मैदान में उतर जाना, जहाँ हार सुनिश्चित है। मतलब इस मार्केट में ट्रेडिंग करने के लिए टेक्निकल एनालिसिस एक टूल है, हथियार है; जिसे आपको जानना, समझना और इस्तेमाल करना आना ही चाहिए। तभी आप इस मार्केट से पैसा कमा पाएंगे, नहीं तो आप इस मार्केट को अपना पैसा देकर जाओगे।
टेक्निकल एनालिसिस में शेयर प्राइस, वॉल्यूम, ट्रेंड्स आदि का past में हुए मूवमेंट का एनालिसिस कर उसके future में होने वाले मूवमेंट का अनुमान लगाया जाता है। स्टॉक मार्केट में ऐसा माना जाता है कि "इतिहास दोहराया जाता है।" इसी तरह किसी स्टॉक्स या इंडेक्स की प्राइस या ट्रेंड भी अपने पिछले प्राइस या ट्रेंड को फिर से दोहरा सकते है। टेक्निकल एनालिसिस का उपयोग मुख्यतः शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग में किया जाता है, लेकिन इसे लॉन्ग टर्म इंवेस्टिंग में भी कर सकते है। इस एनालिसिस के जरिये हम किसी ट्रेड में कब एंट्री और कब एग्जिट करना है, का अनुमान लगा सकते है।
टेक्निकल एनालिसिस में मुख्य रूप से स्टॉक की प्राइस, ओपन, क्लोज, हाई, लो, वॉल्यूम, चार्ट पैटर्न, डिमांड एंड सप्लाई जोन, सपोर्ट एंड रजिस्टेंस, इंडिकेटर, प्राइस एक्शन, ट्रेंड लाइन, ऑल टाइम लो, ऑल टाइम हाई आदि का एनालिसिस किया जाता है।
टेक्निकल एनालिसिस (Technical Analysis) कैसे करे?
दोस्तों ट्रेडर्स टेक्निकल एनालिसिस में चार्ट के साथ साथ कुछ इंडिकेटर, ट्रेंड लाइन का ड्राइंग, सपोर्ट एंड रजिस्टेंस, कैंडल्स, चार्ट पैटर्न और वॉल्यूम आदि का एनालिसिस कर ट्रेड लेते है, आइये कुछ तरीकों को संक्षेप (Short) में जाने...
चार्ट के प्रकार (Type of Chart) के आधार पर
चार्ट कई प्रकार के होते है, जैसे Bars, Henko, Candles, Line, Baseline, Area, Heikin Ashi, Renko, Line Break, Kagi, Point & Figure, Range etc. लेकिन इनमें से ट्रेडर्स के बीच जो सबसे ज्यादा पॉपुलर Candlestick Chart है। अधिकतर ट्रेडर्स इसी चार्ट का उपयोग करते है।
Candlestick Chart चार्ट का उपयोग करके ट्रेडर अपट्रेंड, डाउन ट्रेंड का पता लगाते है और इसी आधार पर स्टॉपलॉस और प्रॉफिट बुक को कहाँ लगाना है? यह तय करते है। Candlestick कई प्रकार के होते है, इसे सामान्यतः Bullish या तेजी और Bearish या मंदी के आधार पर समझा जा सकता है। अधिकतर ट्रेडिंग सॉफ्टवेयर के चार्ट में Bullish कैंडल को हरे रंग से और Bearish कैंडल को लाल रंग दर्शाया जाता है। कैंडल्स की साइज अलग अलग टाइम फ्रेम में अलग अलग हो सकता है। कैंडल्स के साइज या पैटर्न के आधार पर मार्केट के ट्रेंड को प्रेडिक्ट किया जाता है। एक या एक से अधिक कैंडल्स मिलकर अलग अलग पैटर्न भी बनते है।
Type of Candles
सिंगल कैंडल (Single Candle) के आधार पर कुछ प्रकार:
1. Doji Candle
2. Marubozu
3. Hammer
4. Hanging Man
5. Morning Star
6. Evening Star
7. Shooting Star
एक से अधिक कैंडल (Multiple Candles) के आधार पर कुछ प्रकार:
1. Engulfing
2. Bullish Engulfing
3. Bearish Engulfing
4. Harami
5. Bullish Harami
6. Bearish Harami
7. Piercing Pattern
8. Dark Cloud Cover
9. Morning Star
10. Evening Star
चार्ट पैटर्न (Chart Pattern) के आधार पर
जब भी शेयर प्राइस में कोई मूवमेंट होता है, तो वह एक पैटर्न बनाते हुए मूव करती है, क्योंकि शेयर्स की प्राइस एक सीधी रेखा में नहीं चलती है यह कभी ऊपर या कभी नीचे जाती हुई चलती है, जिससे एक पैटर्न बनती है। स्टॉक मार्केट में ऐसा माना जाता है कि इतिहास पुनः दोहराया जाता है, इसलिए स्टॉक या इंडेक्स की प्राइस और पैटर्न का फिर से पुनरावृत्ति की संभावना अधिक होती है। इसी पैटर्न को समझकर ट्रेडर ट्रेड लेने का निर्णय लेते है।
चार्ट पैटर्न (Chart Pattern) के कुछ प्रकार
1. Double top & double bottom
2. Triple top & triple bottom
3. Head & shoulders
4. Cup handle pattern
5. Rounding top or bottom
6. Triangle
7. Ascending triangle
8. Descending tringle
9. Symmetric triangle
10. Wedge pattern
11. Broadening top
12. Price channel
13. Pennant
14. Flag
15. Rectangle
टाइम फ्रेम (Time Frame) के आधार पर
ट्रेडर्स चार्ट में कोई एक टाइम फ्रेम का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि वह मल्टीपल टाइम फ्रेम का इस्तेमाल करते है, तभी उनके सफल होने की संभावना बढ़ जाती है और अच्छा प्रॉफिट जेनरेट कर सकते है। टाइम फ्रेम को अलग अलग टाइम में सेट करने से चार्ट पैटर्न, कैंडल्स की साइज बदल जाते है, जिसे ट्रेडर्स एनालिसिस कर ट्रेड लेते है।
जैसे: स्कलपिंग ट्रेडिंग में 1 से 2 मिनट, इंट्राडे ट्रेडिंग में 5 से 15 मिनट, स्विंग ट्रेडिंग में 30 मिनट से 1 घंटे तक, पोजिशनिंग ट्रेडिंग के लिए 1 दिन का टाइम फ्रेम यूज़ कर सकते है।
प्राइस एक्शन (Price Action) के आधार पर
किसी स्टॉक का प्राइस एक्शन का पहचान करना बहुत ही सरल है, बस इसके लिए आपको चार्ट रीड करने के लिए आना चाहिए। चार्ट में जब भी सपोर्ट या रजिस्टेंस को बड़ा कैंडल के साथ ब्रेक करते है, यही प्राइस एक्शन होता है। ट्रेडर इसे पहचान कर ट्रेड करे तो प्रॉफिट होने की संभावना बढ़ जाती है। प्राइस एक्शन में कोई इंडिकेटर का उपयोग नहीं किया जाता है, इसमें चार्ट को मल्टी टाइम फ्रेम में उपयोग करते है । एक ट्रेडर के लिए प्राइस एक्शन एक ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी होता है।
इंडिकेटर (Indicator) के आधार पर
इंडिकेटर एक तरह के सॉफ्टवेयर होते है, जो किसी स्टॉक की Past के प्राइस और वॉल्यूम का Analysis कर उसमें होने वाले मूवमेंट को पहले से सिग्नल दे देते है। इसी के आधार पर ट्रेडर अपनी ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी बनाते है। मार्केट में सैकड़ों तरह के इंडिकेटर उपलब्ध है। ज्यादातर ट्रेडर्स टेक्निकल एनालिसिस में 2 या 3 इंडिकेटर का उपयोग करते है। बहुत ज्यादा इंडिकेटर से असमंजस की स्थिति होती है और इससे सही निर्णय नहीं ले पाते।
इंडिकेटर के प्रकार:
1. Leading Indicators
2. Lagging Indicators
Leading Indicators
Leading Indicators स्टॉक्स या इंडेक्स के प्राइस में होने वाले मूवमेंट अर्थात बुलिश या बेयरिस की सिग्नल पहले ही दे देता है। Leading Indicators को Oscillators भी कहते है। इनके सिग्नल 0 और 100 के बीच ही घूमता है। ये स्टॉक्स या इंडेक्स के Over Bought और Over Sold का भी सिग्नल देते है। RSI, Stochastics, CCI, %R आदि Leading Indicators है।
Lagging Indicators
Lagging Indicators स्टॉक या इंडेक्स में होने वाले मूवमेंट का सिग्नल देर से देती है। यह ट्रेंड के अनुसार चलने वाले सूचक होते है। यह भविष्य में आने वाले मूवमेंट का अंदाजा नहीं देता है, लेकिन मार्केट का डायरेक्शन जरूर बताता है। MACD, Simple Moving Average, Exponential Moving Average आदि प्रसिद्ध Lagging Indicators है।
ट्रेंड्स (Trends) के आधार पर
शेयर मार्केट में ट्रेंड तीन प्रकार के होते है: अपट्रेंड, डाउन ट्रेंड और साइडवेज ट्रेंड। अपट्रेंड यानी जब मार्केट Bullish (तेजी) में हो तो शेयर की प्राइस लगातार बढ़ते रहती है। डाउन ट्रेंड यानी जब मार्केट Bearish (मंदी) में हो तो शेयर की प्राइस लगातार घटते रहती है। साइड वेज ट्रेंड में शेयर की प्राइस न ज्यादा बढ़ती है और न ही ज्यादा घटती है, यह एक सीमित दायरे में घूमती रहती है। इसमें ट्रेडर ट्रेंड की दिशा में ट्रेड लेकर प्रॉफिट कमा सकते है। यदि ट्रेंड की विपरीत दिशा में ट्रेड ले तो नुकसान हो सकता है। इसलिए एक अच्छा ट्रेडर्स ट्रेंड को जरूर फॉलो करता है। एक इन्वेस्टर भी ट्रेंड के आधार पर लॉन्ग टर्म (6 माह या 1 साल से अधिक) के चार्ट को एनालिसिस कर इन्वेस्ट कर सकते है।
ट्रेंड लाइन (Trend Line) के आधार पर
किसी स्टॉक या इंडेक्स की चार्ट में एक लाइन ड्रा करके ट्रेंड लाइन बनाया जाता है और इसी के आधार पर ट्रेडर ट्रेंडिंग स्ट्रेटेजी बनाते है। ट्रेंड लाइन ड्रा करने का मुख्य मदसद सपोर्ट लेवल या डिमांड जोन और रेजिस्टेंट लेवल या सप्लाई जोन का पता करना होता है।
जब कोई कैंडल सपोर्ट लाइन को क्रॉस करे तब Sell का और जब सपोर्ट लेवल से मुड़े या रिवर्स हो जाये तो Buy का सिग्नल मिलता है। इसी तरह जब कोई कैंडल रेजिस्टेंस लेवल को क्रॉस करे तब Buy का और जब रजिस्टेंस लेवल से मुड़े या रिवर्स हो जाये तो Sell का सिग्नल मिलता है।
वॉल्यूम (Volume) के आधार पर
मार्केट में Buy और Sell होती रहती है, लेकिन कितनी ट्रेडिंग हुई ये जानने के लिए Volume का इस्तेमाल किया जाता है। Volume किसी स्टॉक्स में होने वाले कुल खरीदी और बिक्री की कुल मात्रा को दर्शाते हैं। स्टॉक्स का Volume दिन भर की होने वाले ट्रेड में जितने शेयर्स ट्रांसफर हो रहे है, उनकी संख्या होती है। उदाहरण के लिए 100 शेयर्स खरीदने और 100 शेयर्स बेचने पर ट्रैड वॉल्यूम 200 नहीं होगा, बल्कि ट्रेड वॉल्यूम 100 ही होगा।
High Volume हमें यह बताता है कि किसी बड़े निवेशक जैसे FII, DII या AMC आदि खरीदी बिक्री कर रहे है। Low Volume हमें बताता है कि स्टॉक्स में छोटे निवेशक काम कर रहे है। जिस दिन स्टॉक्स की वॉल्यूम अधिक हो उस दिन हमें ट्रेड करना चाहिए और जिस दिन स्टॉक्स की वॉल्यूम कम हो उस दिन ट्रेड लेने में सावधानी बरतनी चाहिए।
वॉल्यूम के कुछ सिग्नल:
1. जब स्टॉक्स की प्राइस बढ़े और साथ ही वॉल्यूम भी बढ़े, तब अच्छा सिग्नल माना जाता है।
2. जब स्टॉक्स की प्राइस गिरे और साथ ही वॉल्यूम बढ़े, तब खराब सिग्नल माना जाता है।
3. जब स्टॉक्स की प्राइस गिरे और साथ ही वॉल्यूम भी गिरे, तब अच्छा सिग्नल माना जाता है।
4. जब स्टॉक्स की प्राइस बढ़े और साथ ही वॉल्यूम गिरे, तब खराब सिग्नल माना जाता है।
सपोर्ट एंड रजिस्टेंस (Support & Resistance) के आधार पर
किसी स्टॉक्स की प्राइस में अंतर उसके सप्लाई और डिमांड के आधार पर चार्ट बनाये जाते है। यही टेक्निकल एनालिसिस का मुख्य आधार होता है। यदि सप्लाई से अधिक डिमांड हो तो स्टॉक्स की प्राइस बढ़ता है और इसके ठीक विपरीत यदि डिमांड से अधिक सप्लाई हो तो प्राइस कम होता है।
किसी स्टॉक्स के गिरते प्राइस चार्ट पर जब हम लाइन ड्रा करते है तो नीचे की ओर एक लेवल मिलता है, जहां पर स्टॉक का प्राइस उस लेवल को पार नहीं कर पाएं हो या पार करने की कोशिश कर रहे हो, यहां से ही स्टॉक की प्राइस बढ़ने की संभावना होती है, यही सपोर्ट लेवल कहलाता है। अब यदि उस लेवल को पर करके निकल जाए तो उस स्टॉक पर ब्रेक आउट हुआ है, कहा जाता है।
इसी प्रकार किसी स्टॉक्स के बढ़ते प्राइस चार्ट पर जब हम लाइन ड्रा करते है तो ऊपर की ओर एक लेवल मिलता है, जहां पर स्टॉक का प्राइस उस लेवल को पार नहीं कर पाएं हो या पार करने की कोशिश कर रहे हो, यहां से ही स्टॉक की प्राइस घटने की संभावना होती है, यही रेजिस्टेंस लेवल कहलाता है। अब यदि उस लेवल को पर करके निकल जाए तो उस स्टॉक पर ब्रेक आउट हुआ है, कहा जाता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
टेक्निकल एनालिसिस में कोई जरूरी नहीं कि हमेशा सही होगा। ये केवल संभावना पर निर्भर करता है, जितना ज्यादा समय आप मार्केट को देंगे उतना ज्यादा आप सीखते जाएंगे, अनुभव बढ़ते जाएंगे, सटीकता आती जाएगी।
ऐसा बिल्कुल नहीं है कि टेक्निकल एनालिसिस पर आधारित 2-3 बुक्स पढ़ लिये, कुछ यूट्यूब वीडियो देख लिये या किसी ब्लॉगर का पोस्ट पढ़ लिये तो पूरी तरह सीख जाएंगे। जब तब आप मार्केट में रियल ट्रेडिंग नहीं करेंगे तब तक अनुभव नहीं मिलेगा और न ही अच्छे से सीख पायेंगे। याद रखे टेक्निकल एनालिसिस को दुनिया में कोई भी आपको नहीं सीखा सकता, इसे अपनी स्वयं गलती को सुधार कर, अनुभव से, खुद की ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी बनाकर ही सीख सकते है। किसी सफल ट्रेडर्स की प्रॉफिट को देखकर बिल्कुल नहीं ट्रेड करें, भले ही उनसे प्रेरित हो लेकिन फॉलो न करें। क्योंकि सफल ट्रेडर्स की कैपिटल, अनुभव, रिस्क लेने की क्षमता आपसे अलग हो सकती है।
एक बात और कि केवल टेक्निकल एनालिसिस के आधार पर भी आप सफल ट्रेडर्स नहीं बन सकते है। टेक्निकल एनालिसिस के साथ साथ मनी मैनेजमेंट, ट्रेडिंग साइकोलॉजी, रिस्क रिवार्ड रेशियों, विभिन्न डेटा (जैसे- ऑप्शन चैन डेटा, ऑप्शन ग्रीक, FII & DII डेटा आदि), रिलेटेड न्यूज़ (जैसे- स्टॉक्स बेस्ड न्यूज़, ग्लोबल मार्केट न्यूज़, इकोनॉमिक्स एंड पोलिटिकल न्यूज़) आदि पर भी ध्यान देना पड़ता है, तभी आप मार्केट से प्रॉफिट कमा सकते है।
उम्मीद है दोस्तों टेक्निकल एनालिसिस (Technical Analysis) क्या है? इस पोस्ट से इसके Basic Concept क्लियर हुये होंगे।