दोस्तों शेयर मार्केट में इन्वेस्ट और ट्रेडिंग करना तो आप धीरे धीरे सीख ही रहे होंगे। यदि आप इन्वेस्ट करते है तो आपके लिए ये जानना बहुत जरूरी है कि आप किस प्रकार के इन्वेस्टर या निवेशक है। ये जानने के बाद आप एक अच्छा इन्वेस्टर या ट्रेडर बन कर एक बेहतर रिटर्न हासिल कर सकते है। आइए विभिन्न प्रकार के निवेशकों के बारे में गहराई से जानें और पता करें कि आप किस प्रकार के इन्वेस्टर, ट्रेडर या किस सेगमेंट से संबंधित हैं।
जोखिम लेने की क्षमता के आधार पर निवेशकों का वर्गीकरण:
जोखिम लेने की क्षमता से तात्पर्य उस नुकसान की मात्रा से है जो एक निवेशक निवेश करते समय संभाल या नियंत्रित कर सकता है। एक निवेशक अपनी आयु, वित्तीय योजना, वित्तीय लक्ष्य, वित्तीय उत्पादों के बारे में जागरूकता, पारिवारिक जिम्मेदारी, जोखिम उठाने की क्षमता, आर्थिक स्थिति, कम्फर्ट लेवल आदि के आधार पर जोखिम उठा सकता है और साथ ही अपने पोर्टफोलियो की बेहतर योजना बना सकता है।
यहां विभिन्न प्रकार के जोखिम उठाने वाले निवेशक हैं:
1. कंज़र्वेटिव इन्वेस्टर्स (Conservative investors):
एक कंज़र्वेटिव इन्वेस्टर्स या रूढ़िवादी निवेशक बहुत कम स्तर पर जोखिम चाहते है। वे अपने निवेश पर एक निश्चित ब्याज या आय पर विश्वास करते है और साथ ही साथ उनका पहली फोकस पूंजी संरक्षण पर होता है। वे उच्च रिटर्न अर्जित करने की लालसा नहीं रखते हैं। इसलिए वे सावधि जमा (FD), पब्लिक प्रोविडेंट फण्ड (PPF), सरकारी बॉन्ड, लार्ज कैप कंपनी के शेयर्स आदि में निवेश करना पसंद करते हैं।
2. मॉडरेट इन्वेस्टर्स (Moderate Investors):
एक मॉडरेट इन्वेस्टर्स या मध्यम निवेशक कम जोखिम वाले निवेश विकल्पों में निवेश करना पसंद करता है। हालांकि, इस प्रकार के निवेशक अपनी सहनशीलता के अनुसार कुछ जोखिम उठाते हैं। वे विभिन्न एसेट्स क्लास और इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश कर अपने पोर्टफोलियों का डायवर्सिफिकेशन करते हैं। एक संतुलित दृष्टिकोण निवेशकों को उनके द्वारा लिए गए जोखिम के लिए उचित रिटर्न प्राप्त करने में मदद करता है। ऐसे निवेशकों को बाजार में गिरावट के दौरान नुकसान हो सकता है। वे गोल्ड या डेट फंड जैसी अन्य एसेट्स में विविध प्रकार से निवेश कर बाजार में होने वाले नुकसान की भरपाई कर सकते हैं ।
3. एग्रेसिव इन्वेस्टर (Aggressive Investors):
ऐसे निवेशक जो उच्च जोखिम लेने की क्षमता के साथ साथ नुकसान के प्रति सहनशील भी हो, उसे एग्रेसिव इन्वेस्टर या आक्रामक निवेशक माना जाता है। ये वित्तीय बाजारों के अधिक जानकार और काफी अनुभवी होते है। इन निवेशकों के पास आमतौर पर एक बड़ा पोर्टफोलियो होता है। वे आम तौर पर फ्यूचर एंड ऑप्शन जैसे हाई रिस्क हाई रिटर्न वाले इंस्ट्रूमेंट्स में ट्रेड करते हैं। हालांकि एग्रेसिव इन्वेस्टर हाई रिस्क हाई रिटर्न वाले इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते है, लेकिन वे भी मार्केट के गिरावट या संकट के समय में घबरा सकते हैं।
निवेश शैली के आधार पर निवेशकों का वर्गीकरण:
1. वैल्यू इन्वेस्टर (Value Investors):
वैल्यू इन्वेस्टर वे निवेशक होते हैं जो अंडरवैल्यूड स्टॉक ढूंढना चाहते हैं। अंडरवैल्यूड स्टॉक वे स्टॉक है जिनका वर्तमान स्टॉक प्राइस उनके इनिशियल वैल्यू से कम हो। एक वैल्यू इन्वेस्टर प्राइस टू अर्निंग रेशियों (P/E), प्राइस टू बुक वैल्यू (P/B), अर्निंग पर शेयर (EPS) आदि के आधार पर एनालिसिस कर कम कीमत के स्टॉक का चुनाव कर इन्वेस्ट करते है, जिनके भविष्य में प्राइस बढ़ने की संभावना दिखती हो। वैल्यू इन्वेस्टर आमतौर पर लंबी अवधि के निवेशक होते है।
2. ग्रोथ इनवेस्टर्स (Growth Investors):
ग्रोथ इनवेस्टर्स उन कंपनियों या उद्योगों और क्षेत्रों में निवेश करते है, जिनमे उच्च वृद्धि क्षमता हो। ये इन्वेस्टर आक्रामक शैली के निवेशक होते है। ये अपने कैपिटल पर अधिक से अधिक रिटर्न प्राप्त करने के लिए अपने पोर्टफोलियो को सक्रिय रूप से एनालिसिस करते रहते है। एक ग्रोथ इनवेस्टर्स कम समय में त्वरित ग्रोथ चाहता है।
3. स्पेशल सिचुएशन इन्वेस्टर्स (Special Situation Investors):
स्पेशल सिचुएशन इन्वेस्टर्स वे व्यक्ति होते हैं जो उन कंपनियों में निवेश करते हैं जहां टेण्डर आफर, विलय, अधिग्रहण, दिवालियापन, मुकदमेबाजी, पूंजी संरचना अव्यवस्था, शेयरहोल्डर सक्रियता, स्टॉक बायबैक और किसी अन्य घटना से संबंधित कॉर्पोरेट गतिविधियां हो, जो कंपनी की अल्पकालिक संभावनाओं को प्रभावित कर सकती है। इस प्रकार के निवेशकों का रुझान अक्सर ब्रेकिंग न्यूज़ की ओर होता है। जब वे निवेश करते हैं तो वे शेयर बाजार को बारीकी से ट्रैक करते हैं।
4. ट्रेडर्स (Traders):
ट्रेडर वे व्यक्ति होते हैं जो कंपनी के शेयर की कीमतों पर सट्टा लगाते हैं। वे बार-बार शेयरों की खरीद-बिक्री कर तेजी से रिटर्न कमाने की कोशिश कर रहे होते हैं। उनकी होल्डिंग पीरियड आम तौर पर निवेशकों की तुलना में कम होती है। वे कुछ मिनट, कुछ घंटों, कुछ दिनों या हफ्तों में अपनी स्थिति से बाहर निकल सकते हैं। शेयर मार्केट में ट्रेडिंग करना सबसे ज्यादा हाई रिस्क और हाई रिटर्न या रिवार्ड वाला सेगमेंट है।
शेयर मार्केट में पॉपुलर इन्वेस्टर्स का वर्गीकरण:
1. इंडिविजुअल इन्वेस्टर्स (Individual Investors):
जिस समय हम एक इन्वेस्टर या निवेशक के बारे में सोचते हैं, तो हम केवल एक इंडिविजुअल इन्वेस्टर्स के बारे में सोचते हैं। हालांकि इंडिविजुअल इन्वेस्टर्स के पास भारतीय शेयर बाजारों में केवल 6% हिस्सेदारी है।
इंडिविजुअल इन्वेस्टर को दो कैटेगरी में विभाजित किये है-
A. रिटेल इन्वेस्टर (Retail Investors):
एक व्यक्ति (फिजिकल या लीगल) जो अपने स्वयं के खाते से कैपिटल मार्केट में निवेश करता है या अपनी बचत पर एक अच्छा रिटर्न पाने के उद्देश्य से अपना स्वयं का पोर्टफोलियो बनाता है, उसे रिटेल इंवेस्टर या खुदरा निवेशक कहा जाता है। भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (सेबी) रिटेल इंवेस्टर को ऐसे व्यक्तियों के रूप में परिभाषित करता है जिनके IPO में आवेदन का आकार 2 लाख रुपये से कम हो।
ऐसे निवेशक या इन्वेस्टर जिनका मार्केट में एक से दो लाख रुपये तक इन्वेस्ट हो या निवेश योग्य संपत्ति हो, उसे रिटेल इन्वेस्टर या खुदरा निवेशक कहते है। अभी भारतीय शेयर मार्केट में रिटेल इन्वेस्टर की हिस्सेदारी लगभग 6% है। इस प्रकार के निवेशक ज्यादातर असुरक्षित होते है, क्योंकि वे मार्केट की जानकारी से ज्यादा अपडेट नहीं रहते है। नोटबन्दी (Demonetization) और कोविड 19 के बाद रिटेल इन्वेस्टर की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है।
B. एच इन आई (HNI):
एच इन आई (HNI) को High Networth Individuals (HNI) या Non-Institutional Investors (NII) भी कहते है। ऐसे इंडिविजुअल इंवेस्टर जिनका निवेश की राशि 2 करोड़ से अधिक हो या 2 करोड़ से अधिक निवेश योग्य संपत्ति वाले निवेशकों को एचएनआई/एनआईआई (HNI / NII) माना जाता है। 25 लाख रुपये से 2 करोड़ रुपये से अधिक की निवेश योग्य संपत्ति वाले व्यक्तियों को उभरते HNI के रूप में माना जाता है ।
एचएनआई/एनआईआई को शेयरों का आवंटन आनुपातिक आधार पर होता है, यानी, यदि कोई 10,000 शेयरों के लिए आवेदन करता है और इश्यू को 10 गुना सब्सक्राइब किया जाता है, तो उन्हें 1,000 शेयर (10,000/10) आवंटित किए जाएंगे।
2. डी आई आई (DII):
डी आई आई (DII) को घरेलू संस्थागत निवेशक या Domestic Institutional Investors कहते है। सेबी (SEBI) इन्हें Qualified institutional investors (QIIs) के श्रेणी में रखते है। डीआईआई उसी देश में निवेश करते हैं जहां वे निवास करते हैं।
डी आई आई एक उच्च मूल्य वाली भारतीय कंपनियां होती हैं, जो मुनाफा कमाने के लिए भारतीय शेयर बाजार में निवेश करती हैं। एक घरेलू संस्थागत निवेशक के रूप में म्यूच्यूअल फण्ड हाउस, हेज फंड, बीमा कंपनियां, बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान शामिल हो सकते हैं।
उनका निवेश इस बात से संबंधित है कि देश में राजनीतिक और कानूनी दोनों तरह से निवेश की स्थिति कितनी अनुकूल है। अनुकूल परिस्थितियों में सब्सिडी, टैक्स, छूट और अन्य वित्तीय प्रोत्साहन शामिल हैं।
इस प्रकार, एक अनुकूल वातावरण बनाकर, सरकार यह सुनिश्चित करती है कि भारतीय कंपनियां विदेशों के बजाय अपने देश में निवेश करें। विदेशी संस्थागत निवेशकों की तरह, डीआईआई भी बाजार में तरलता पैदा करने के लिए जिम्मेदार हैं।
उदाहरण: एचडीएफसी लाइफ, एलआईसी और निप्पॉन एएमसी, यूटीआई एएमसी, आदित्य बिड़ला सन लाइफ एएमसी एल आई सी, न्यू इंडिया एश्योरेंस, स्टार हेल्थ आदि।
3. एफ आई आई और एफ पी आई (FII & FPI):
FII यानी विदेशी संस्थागत निवेशक (Foreign Institutional Investors) और FPI यानी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (Foreign Portfolio Investors) ये दोनों निवेशक भारत के बाहर के होते है और ये भारत में निवेश करते है। FII & FPI दोनों सेबी (SEBI) में पंजीकृत वित्तीय संस्थान होते है। सेबी (SEBI) एफ आई आई और एफ पी आई को क्वालिफाइड इंस्टिट्यूशनल इन्वेस्टर्स Qualified institutional investors (QIIs) के श्रेणी में रखते है ।
FII और FPI निवेशकों का एक समूह है जो अपने देश के अलावा किसी अन्य देश में निवेश करता है। ये निवेशक हेज फंड (Hedge Funds), सॉवरेन वेल्थ फंड (SWF), चैरिटी ट्रस्ट, पेंशन फंड, बैंक, म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियां या अन्य वित्तीय संस्था हो सकते हैं।
FII और FPI सेबी (SEBI) द्वारा पंजीकृत किये जाते है, तभी वे भारत में निवेश कर सकते है। उन्हें सेबी के रूल और रेगुलेशन का पालन करना पड़ता है।
सेबी ने कुछ प्रतिबंधों में और ढील दी है और FII और FPI को गैर-सूचीबद्ध एक्सचेंजों में निवेश करने की अनुमति दी है।
एफआईआई के कुछ उदाहरण मॉर्गन स्टेनली, बैंक ऑफ सिंगापुर, वेंगार्ड, आबू धाबी इन्वेस्टमेंट ऑथोरिटी, यूरोपसिफिक ग्रोथ फण्ड, फ्रेंक्लिन टेम्पलटन इन्वेस्टमेंट फंड्स आदि।
निष्कर्ष (Conclusion):
जब निवेश की बात आती है तो कोई एक आकार फिट नहीं होता है। एक निवेशक के लिए अपनी जोखिम लेने की क्षमता, सहनशीलता, निवेश शैली का विश्लेषण करना और यह तय करना महत्वपूर्ण है कि वह किस प्रकार का निवेशक है।
एक बार जब आप यह पता लगा लेते हैं कि आप किस प्रकार के निवेशक हैं, तो अगला कदम उपयुक्त निवेश विकल्पों में निवेश करना है, जिससे आप अपने वित्तीय लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकें। लेकिन सही निवेश न चुनना भारी पड़ सकता है। इसलिए अपने आप से एक सवाल जरूर पूछिये कि मैं किस प्रकार का निवेशक हूँ? निवेशकों के प्रकार जानने व समझने से निवेशक को अपने पोर्टफोलियो की बेहतर योजना बनाने में मदद मिल सकता है।
आशा है दोस्तों इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद शेयर मार्केट में निवेशकों के प्रकार के बारे में जानकारी अच्छा लगा होगा और साथ ही आसानी से समझ में आया होगा। अंत तक पढ़ने के लिये दिल से धन्यवाद!
Happy Investing!