दोस्तों फाइनेंसियल स्टेटमेंट (Financial Statement) एक Financial Term होता है, इसे हिंदी में वित्तीय या आर्थिक विवरण कहा जाता है। किसी बिजनेस, कंपनी, संस्था या इंडिविजुअल के लिए फाइनेंसियल स्टेटमेंट बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस स्टेटमेंट से किसी कंपनी या बिजनेस के Profit & Loss, Cash Flow, Asset, Liabilities आदि से संबंधित जानकारी प्राप्त होती है। इसे प्रति वर्ष बनाया जाता है।
इस आर्टिकल में हम What are Financial Statements in Hindi? फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स क्या है? इसे बहुत ही आसान शब्दों में समझते है।
फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स (Financial Statements) क्या है?
दोस्तों जिस प्रकार किसी स्कूल या कॉलेज में पढ़ने वाले स्टूडेंट की सफलता या असफलता को दिखाने के लिए हर साल एक रिपोर्ट कॉर्ड या मार्क शीट बनायी जाती है, इसी प्रकार किसी बिजनेस, संस्था या कंपनी की प्रॉफिट/लॉस या सफलता/असफलता को दिखाने के लिए प्रति वर्ष फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स बनायी जाती है।
कई कामर्स बैकग्राउंड के स्टूडेंट्स ये समझते है कि फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स तो केवल बिजनेस या कंपनी की ही बनायी जाती है। जबकि सच तो यह है कि हममें से हरेक व्यक्ति की एक फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स होती है। चाहे इसे हम समझते हो या नहीं समझते हो। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति पैसे से कोई न कोई लेनदेन करते रहता है। इस प्रकार कोई भी व्यक्ति, संस्था या कंपनी जो पैसे का लेनदेन करते हो उसकी फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स होती है।
जब हम कोई बैंक में लोन लेने के लिए जाते है तो बैंक हमसे सबसे पहले हमारे फाइनेंसियल स्टेटमेंट (जैसे: बैंक स्टेटमेंट) मांगते है। इस स्टेटमेंट के आधार पर बैंक यह पता कर लेते है कि हमारा फाइनेंसियल हेल्थ कैसा है, हम समय पर ब्याज और मूल चुका पायेगा कि नहीं।
फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स (Financial Statements) को जानना क्यों जरूरी है?
यदि आप अपनी वित्तीय स्थिति सुधारना चाहते है या किसी बिजनेस/कंपनी में निवेश करना चाहते है, दोनों ही Cases में आपको फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स को अच्छे से समझना होगा। तभी आप अपने इनकम, बजट, ख़र्चे, इन्वेस्टमेंट आदि को मैनेज कर पायेंगे, अपनी फाइनेंसियल गोल को अचीव कर पायेंगे और साथ ही एक अच्छा निवेशक बन पायेंगे। हम यहाँ किसी कंपनी या बिजनेस की फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स के बारे में जानेंगे।
फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स (Financial Statements) में तीन तरह के स्टेटमेंट होते है:
1. प्रॉफिट एंड लॉस स्टेटमेन्ट (Profit & Loss Statement)
2. बैलेंस शीट (Balance Sheet)
3. कैश फ्लो स्टेटमेंट (Cash Flow Statement)
प्रॉफिट एंड लॉस स्टेटमेन्ट (Profit & Loss Statement)
प्रॉफिट एंड लॉस स्टेटमेन्ट (Profit & Loss Statement) को P&S Statement या Income Statement भी कहते है। इस स्टेटमेन्ट के द्वारा कंपनी/इंडिविजुअल अपनी बिजनेस में होने वाले प्रॉफिट और लॉस को प्रत्येक तिमाही और प्रतिवर्ष आधार पर show करते है। इसे तिमाही आधार पर Apr से Jun तक, Jul से Sep तक, Oct से Dec तक और Jan से Mar तक बनाया जाता है। इस स्टेटमेन्ट में मुख्यतः Sales, Expenses, Operating Profit, Other Income, Interest, Depreciation, Tax, Net Profit, EPS आदि को दर्शाया जाता है।
जब कंपनी सेल्स या सर्विस से इनकम अधिक कर रही हो और उसके खर्चें कम हो तो कंपनी प्रॉफिट में होती है। जब सेल्स या सर्विस से इनकम कम और खर्चे अधिक हो तो कंपनी लॉस में होती है।
एक अच्छा प्रॉफिट एंड लॉस स्टेटमेन्ट तक माना जाता है, जब कंपनी की बिजनेस में Sales और Net Profit में हरेक तिमाही (QOQ) और हरेक वार्षिक (YOY) बढ़ोतरी हो रही हो। एक अच्छे निवेशक को इस स्टेटमेन्ट को ध्यान से पढ़ना और समझना चाहिए, तभी किसी कंपनी में निवेश करना चाहिए।
बैलेंस शीट (Balance Sheet)
बैलेंस शीट (Balance Sheet) को हिंदी में चिट्ठा पत्र या तुलन पत्र कहते है। बैलेंस शीट से कंपनी के संपत्ति (Asset), दायित्व या देनदारियाँ (Liabilities) और शेयर्स होल्डर इक्विटी (Share Holder Equity) के बारे में पता चलता है। बैलेंस शीट से कंपनी के एक निश्चित समय में उसके फाइनेंसियल कंडीशन को समझ सकते है। जैसे कि नाम से स्पष्ट है बैलेंस शीट में Assets और Liabilities बराबर होती है। बैलेंस शीट का समीकरण हैं-
Asset = Liabilities
Balance Sheet दो तरह से बनाये जाते है-
1. हॉरिजोंटल बैलेंस शीट (Horizontal Balance Sheet): इसमें बैलेंस शीट Horizontally दो भाग में बंटे होते है, जिसमें लेफ्ट साइड एसेट को और राइट साइड में इक्विटी और लायबिलिटी को दर्शाया जाता है।
Asset = Equity + Liabilities
2. वर्टिकल बैलेंस शीट (Vertical Balance Sheet): इसमें बैलेंस शीट Vertically दो भाग में बंटे होते है, पहले यानी ऊपर वाले भाग में एसेट और दूसरी यानी नीचे वाले भाग में इक्विटी और लायबिलिटी होता है।
लगभग सारी कंपनियां वर्टिकल बैलेंस शीट ही बनाती है। अधिकतर कंपनियां अपने वर्टिकल बैलेंस शीट में पहले Equity और Liabilities को और बाद में Assets को दर्शाती है।
एसेट (Assets)
किसी कंपनी के एसेट वाले भाग में उनकी संपत्तियों को दर्शाया जाता है। एसेट को उसके प्रकृति के आधार पर निम्न भागों में बांटा गया है-
A. Convertibility के आधार पर:
Convertibility का मतलब यह है कि किसी एसेट को कितनी आसानी और कम समय मे कैश या नगदी में परिवर्तन किया जा सकता है। स्थायित्व और समय के आधार का एसेट दो प्रकार के होते है-
1. फिक्स्ड एसेट (Fixed Assets): इसे Non-Current Assets और Long Term Assets भी कहते है। ऐसे एसेट जिसे दीर्घकाल (Long Term) के लिए होल्ड किया जा सके या एक वर्ष के अंदर कैश में परिवर्तन नहीं किया जा सकता, उसे fixed asset या स्थायी संपत्ति कहते है, जैसे- Land, Building, Machinery, Plant, Furnitures, Patent, Goodwill, Trade Mark आदि।
2. करेंट एसेट (Current Assets): ऐसे एसेट जिसे आसानी से कैश में परिवर्तन क्या जा सके या एक वर्ष के अंदर कैश में परिवर्तन किए जा सके, उसे करेंट एसेट कहते है, जैसे- Cash & Cash Equivalents, Inventory Accounts Receivable, Debtors, Short Term Investment आदि
B. Physical Existence के आधार पर:
मूर्त या भौतिक और अभौतिक आधार पर दो प्रकार के होते है-
1. टांजिबल एसेट (Tangible Assets): ऐसे एसेट जो मूर्त हो या जिसका भौतिक अस्तित्व हो, जिसे देख, स्पर्श और महसूस किया जा सके, उसे टांजिबल एसेट कहते है। जैसे: Land, Building, Machinery, Plant, Furnitures, Equipment आदि।
2. इनटांजिबल एसेट (Intangible Assets): ऐसे एसेट जो अमूर्त हो या जिसका भौतिक अस्तित्व न हो, जिसे देख, स्पर्श और महसूस नहीं किया जा सके, लेकिन उसका एक मूल्य (Value) होता है, उसे इनटांजिबल एसेट कहते है। जैसे: Brand, Goodwill, Patents, Trademarks, Copyrights आदि।
लायबिलिटी (Liabilities)
किसी कंपनी के लायबिलिटी वाले कॉलम में उसके दायित्वों या देनदारियों को दर्शाया जाता है। लायबिलिटी को तीन भागों में बाँटा गया है:
1. शेयर केपिटल ( Share Capital)
2. नॉन करेंट लायबिलिटी (Non Current Liabilities)
3. करेंट लायबिलिटी (Current Liabilities)
1. शेयर केपिटल (Share Capital): जब कंपनी अपनी शेयर्स को पब्लिक में बेचते है, तो उससे मिलने वाले कैपिटल को शेयर कैपिटल कहते है। हालांकि बैलेंस शीट में एसेट और लायबिलिटी को बराबर दिखाया जाता है, लेकिन शेयर्स कैपिटल असल में मालिक या ओनर्स के कैपिटल (Asset) और लायबिलिटी का अंतर होता है। अर्थात
Share Capital = Asset - Liabilities
कंपनी के पास दो तरह के शेयर्स होते है- 1. Preference Share और 2. Share Equity
प्रीफेरेंस शेयर कंपनी अपने विशेष या चुनिंदा निवेशक और प्रमोटर के लिए जारी करते है, जबकि शेयर इक्विटी एक सामान्य निवेशक या जो होल्ड करना चाहते है, के पास होते है।
2. नॉन करेंट लायबिलिटी (Non Current Liabilities): इसे Fixed Liabilities या Long term Liabilities भी कहते है। ऐसे देनदारियाँ या कर्ज जिसे चुकाने के लिए 12 महीनों से अधिक का समय लगता हो यानी ऐसे कर्ज या दायित्व जिसे चुकाने के लिए लंबी अवधि का समय लगता हो, उसे नॉन करेंट लायबिलिटी कहते है। जैसे- Long Term Loan, Loan Term Provision आदि।
3. करेंट लायबिलिटी (Current Liabilities): ऐसे देनदारियाँ या दायित्व जो कंपनी को एक वर्ष या 12 महीनों के अंदर चुकाना होते है, उसे करेंट लायबिलिटी कहते है। जैसे- Short Term Loan, Creditor, Bank Overdraft, Tax Paying, Telephone & Electricity Bill आदि।
यहाँ नीचे किसी कंपनी का Balance Sheet दिखाया जा रहा है, जो कि screener.in से डाऊनलोड किया गया है-
एक अच्छा बैलेंस शीट में,
1. शेयर कैपिटल स्थिर हो या कम बढ़े।
2. Reserves हर साल बढ़े।
3. यदि Borrowing या debt हो तो हर साल घटे।
4. Investment हर साल बढ़े।
5. Fixed Asset में हर साल बढ़ोतरी हो।
कैश फ्लो स्टेटमेंट (Cash Flow Statement)
कैश फ्लो (Cash Flow) को हिंदी में नगद प्रवाह या धन का प्रवाह कहते है। सामान्यतः पैसे का आना और जाना यानी किसी बिजनेस या सैलरी की कमाई का आना और विभिन्न आवश्यकताओं या वस्तुओं को खरीदने में हुए खर्च ही कैश फ्लो कहलाता है। कैश फ्लो किसी कंपनी या बिजनेस के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, साथ ही साथ हमारे पर्सनल फाइनेंस में भी बहुत महत्वपूर्ण है। इसे समझ कर ही किसी अच्छे शेयर की चुनाव कर निवेश कर सकते है। साथ ही हम अपने पैसों को सही तरीके से मैनेज भी कर सकते है।
कंपनी या बिजनेस से आने वाले कैश जैसे- माल या सेवा बेचने पर, उधार, ब्याज आदि को Incoming Cash कहते है। बिजनेस से बाहर जाने वाले कैश जैसे- माल बनाने में खर्च, रेंट, ब्याज, टैक्स, वर्करों की सैलरी, बिजली बिल आदि को Outgoing Cash कहते है।
कैश फ्लो के प्रकार (Type of Cash Flow):
कैश फ्लो के तीन प्रकार होते है-
1. पॉजिटिव कैश फ्लो (Positive Cash Flow): जब बिजनेस से होने वाले इनकम उसके खर्च से अधिक हो तो उसे पॉजिटिव कैश फ्लो कहते है।
2. नेगेटिव कैश फ्लो (Negative Cash Flow): जब बिजनेस से होने वाले इनकम उसके खर्च से कम हो तो उसे नेगेटिव कैश फ्लो कहते है।
3. ब्रेक इवन कैश फ्लो (Break Even Cash Flow): जब बिजनेस से होने वाले इनकम और उसके खर्च बराबर हो तो उसे ब्रेक इवन कैश फ्लो कहते है।
पॉजिटिव कैश फ्लो ही बिजनेस और पर्सनल फाइनेंस में अच्छा माना जाता है। यदि पर्सनल फाइनेंस में नेगेटिव और ब्रेक इवन कैश फ्लो हो तो अपने खर्चों को कम और इनकम को बढ़ाने का प्रयास करें। लेकिन कंपनी या बिजनेस में नेगेटिव और ब्रेक इवन कैश फ्लो हो तो उसमें निवेश करने से बचे।
कैश फ्लो स्टेटमेंट (Cash Flow Statement): कैश फ्लो स्टेटमेंट को हिंदी में नगद प्रवाह विवरण कहा जाता है। इस स्टेटमेंट से किसी बिजनेस, संस्था या कंपनी की वित्तीय स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है। जैसे किसी कंपनी या बिजनेस में कैश कहाँ से आ रही है और कहाँ पर खर्च हो रही है।
यहाँ नीचे किसी कंपनी का Cash Flow Statement दिखाया जा रहा है, जो कि screener.in से डाऊनलोड किया गया है-
कैश फ्लो स्टेटमेंट को तीन भागों में बांटा गया है-
1. Cash From Operating Activity
2. Cash From Investing Activity
3. Cash From Financing Activity
1. Cash From Operating Activity: इस स्टेटमेंट में कंपनी या संस्था अपनी बिजनेस से संबंधित एक्टिविटी प्रोडक्शन, मैनुफैक्चरिंग, रेंट, टैक्स आदि से जुड़े खर्चों को दर्शाते हैं। जैसे- Raw Material खरीदना, Goods एवं Services बेचना, Employee की सैलरी, Tax चुकाना, किराया आदि शामिल है।
इसके अंतर्गत Receivable, Inventory, Payables, Loans Advances आदि को दर्शाया जाता है। एक अच्छा कैश फ्लो स्टेटमेन्ट तब माना जाता है, जब कैश फ्रॉम ऑपरेटिंग एक्टिविटी पॉजिटिव हो।
2. Cash From Investing Activity: इस स्टेटमेंट में कंपनी या संस्था अपनी बिजनेस चलाने के लिए मशीनरी, बिल्डिंग, फर्नीचर जैसे फिक्स्ड एसेट को खरीदने और बेचने के कैश उल्लेख होता है। साथ ही स्टॉक्स या म्यूच्यूअल फण्ड की खरीदी बिक्री का भी उल्लेख रहता है।जैसे- जमीन खरीदना या बेचना, आफिस खरीदना, नई मशीन खरीदना, व्हीकल खरीदना आदि।
इसके अंतर्गत Fixed Asset Purchased, Fixed Asset Sold, Investment Purchased, Investment Sold, Interest received, Dividend received आदि को दर्शाया जाता है।
3. Cash From Financing Activity: इस स्टेटमेंट में कंपनी को बिजनेस चलाने के लिए लोन, बॉन्ड, शेयर्स जारी कर या बेचकर लिए गए कैश का उल्लेख होता है। जैसे- बैंक से उधार लेना, बॉन्ड या डिबेंचर्स जारी करके पैसा लेना, शेयर बेचकर पैसा लेना आदि।
इसके अंतर्गत Proceed from Borrowing, Repayments of Borrowing, , Interest Paid, Dividend Paid, Financial Liabilities आदि को दर्शाया जाता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
अंत में फाइनेंसियल स्टेटमेंट हम सभी के लिए बहुत जरूरी है चाहे वह व्यक्ति, संस्था या कंपनी क्यों न हो। इस स्टेटमेंट की सहायता से हम किसी व्यक्ति, संस्था या कंपनी की फाइनेंसियल कंडीशन क्या थी और अब उसकी कर्रेंट फाइनेंसियल कंडीशन क्या है, इसे पता कर सकते है।
फाइनेंसियल स्टेटमेंट की सहायता से किसी एसेट को खरीदना, किसी कंपनी में इन्वेस्ट करना, कंपनी की मैनेजमेंट, जैसे फाइनेंसियल डिसीजन लेने में आसानी होती है।
उम्मीद है दोस्तों What are Financial Statements in Hindi आर्टिकल आपको आसानी से समझ आया होगा। यदि इसे रिलेटेड कोई सवाल हो तो कमेंट बॉक्स में जरूर लिखे। आर्टिकल को पूरा पढ़ने के लिए दिल से धन्यवाद!