दोस्तों यदि आप आर्थिक रूप से सफल होना चाहते है, तो पर्सनल फाइनेंस के बेसिक चीजें पता होना चाहिए। इस आर्टिकल में पर्सनल फाइनेंस की ऐसी 16 बातों का जिक्र करेंगे, जिन्हें आप सबको पता होनी चाहिए। Let's begin...
1) 10% बचत का नियम
यदि आप अपनी इनकम से ज्यादा खर्च कर देते है या इनकम के बराबर खर्च कर देते है, तो दोनों ही स्थितियों में आप बुरा कर रहे हो। और इस तरह यदि चलता रहा तो आप किसी बुरे कर्ज की जाल में फंस सकते हो। 10% बचत नियम के अनुसार हमें अपनी इनकम का कम से कम 10% हिस्सा सेविंग करते हुए चलना चाहिए। आप चाहे तो अपनी बचत को 20% तक भी कर सकते है, लेकिन अपनी जरूरत को भी ध्यान में रखना चाहिए। यही बचत का हिस्सा आने वाले समय में रिटायरमेंट, कोई एमरजेंसी, ट्रेवल्स या अपनी शौक पर खर्च करने का काम आ सकता है।
न्यूनतम मासिक बचत = कुल मासिक आय का 10%
उदाहरण के लिए, यदि आपकी सैलरी 50,000 रुपये मासिक है तो आप आदर्श रूप से (50,000 × 10%) यानी 5,000 रुपये की बचत होना चाहिए। आप चाहे तो इसे 10,000 रुपये तक की बचत भी कर सकते है।
2) इमरजेंसी फण्ड
हमारा जीवन विभिन्न अनिश्चितओं से गिरा है। यानी कभी भी, किसी भी समय कोई इमरजेंसी जैसे जॉब छूटने, कोई बीमारी, लॉकडाउन, बिजनेस में घाटा आदि आ जाये कोई नहीं जानता है, ऐसी स्थिति में इमरजेंसी फण्ड काम आता है। इसलिए हमें अपनी सैलरी की कम से कम 6 गुने के बराबर लिक्विड फण्ड के रूप (नकद, सेविंग एकाउंट, शॉर्ट टर्म FD) में अलग से सेट करके रखना चाहिए। यानी
इमरजेंसी फण्ड = 6 X मासिक घरेलू खर्च
घरेलू खर्चों में मासिक ऋण EMI भुगतान भी शामिल है।
उदाहरण के लिए, यदि आपकी सैलरी 50,000 रुपये मासिक है तो आपके पास कुल इमरजेंसी फण्ड = 6 X 50,000 = 3,00,000 रुपये होना चाहिए।
3) 48 घंटे का नियम
यदि आपके पास एक अच्छा स्मार्ट फोन हो और किसी दोस्त के मोबाईल देखकर या फ्लिपकार्ट /अमेज़न पर नई स्मार्ट फोन की कुछ विशेष फीचर देखकर उसे खरीदने के लिये आकर्षित हो जाते है, तो ऐसी स्थिति में हमें 48 घंटे यानी 2 दिनों तक रुक जाना चाहिए। आप 48 घंटों तक अपनी जरूरत और बजट पर विचार करेंगे। यह नियम आपके खरीद आवेग के खिलाफ काम करता है और खरीदारी स्थगित कर सकते है।
इस नियम के अनुसार यदि कोई शौक की चीजें खरीदने का मन हो तो उसे 48 घंटे के लिए उसे स्थगित कर दें। ज्यादातर मामलों में यह पाया गया है कि खरीद के आग्रह को स्थगित कर देता है। यह नियम बेवजह की खरीदारी को कम करता है और बचत में मददगार होता है।
4) 50:30:20 का नियम
यह नियम पर्सनल फाइनेंस का बहुत ही फेमस नियम है, जिन्हें अप्लाई कर लाइफ में फाइनेंसियल स्ट्रांग बन सकते है। 50:30:20 के नियम अनुसार अपनी इनकम की कुल राशि का 50% जरूरत (Need) यानी भोजन, कपड़े, ईंधन, बिजली, पानी, आवास आदि में खर्च करना है। इनकम की 30% हिस्सा इच्छाओं और शौक (Want) यानी अपनी पसंद की खाने-पीने, कपड़े, मोबाइल और अन्य लक्ज़री में खर्च कर सकते है, ध्यान रहे इन खर्चों की एक लिमिट होना चाहिए। इनकम की 20% हिस्सा बचत और निवेश (Saving & Investing) यानी कुछ पैसे अपने पास बैंक एकाउंट में रख सकते है और कुछ पैसे म्यूच्यूअल फण्ड, स्टॉक्स मार्केट, गोल्ड, NPS आदि में निवेश कर सकते है। आप चाहे तो बचत और निवेश के हिस्से को 20% से बढ़ा कर 40% तक सकते है और जरूरत और शौक के हिस्से को कम कर सकते है।
मूलभूत जरूरतों के लिए = कुल मासिक आय का 50%
शौक और इच्छाओं के लिए = कुल मासिक आय का 30%
बचत और निवेश के लिए = कुल मासिक आय का 20%
उदाहरण के लिए यदि आपकी मासिक आमदनी 50,000 रुपये है तो जरूरत के लिए (50,000 × 50%) = 25,000 रुपये, शौक और इच्छाओं के लिए (50,000 × 30%) = 15,000 रुपये और बचत और निवेश के लिए (50,000 × 20%) = 10,000 रुपये खर्च करना चाहिये।
5) 72 का नियम
72 का नियम एक शॉर्टकट फॉर्मूला है जिससे यह पता लगा सकते है कि निवेश की गई राशि लगभग कितने वर्षों में दोगुनी हो जाएगी? 72 को रिटर्न की दर से विभाजित करने से आपको अनुमानित वर्षों की संख्या मिल जायेगा जिसमें आपका पैसा दोगुना हो जायेगा। यानी
निवेश का दोगुना होने का समय = 72 / प्रतिवर्ष रिटर्न की दर
उदाहरण के लिए, यदि कोई म्यूचुअल फंड में निवेश करने पर 14% का वार्षिक रिटर्न देता है तो आपके पैसे को दोगुना होने में (72/14) = 5.14 वर्ष लगेंगे।
इस नियम का उपयोग किसी अवधि के लिए आपके धन को दोगुना करने के लिए लागू ब्याज की दर की उल्टी गणना के लिए भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि आप 6 वर्षों में अपने पैसे को दोगुना करना चाहते हैं, तो 72 को 6 से विभाजित करके पता कर सकते है यानी इसके लिए लगभग (72/6) = 12 प्रतिशत की ब्याज दर की आवश्यकता होगी।
6) हाउस अफोर्डेबिलिटी नियम
यह नियम घर खरीदार को अधिकतम राशि तय करने में मदद करता है जो वे घर या संपत्ति खरीदने पर खर्च कर सकते हैं। इस राशि के भीतर घर का खरीद मूल्य रखना समझदारी होगी। इस नियम के अनुसार आपके घर खरीदने की अधिकतम मूल्य आपकी वार्षिक आमदनी की 2.5 गुना के बराबर होना चाहिए। यानी
घर का अधिकतम मूल्य = 2.5 x (वार्षिक आय)
उदाहरण के लिए, यदि आपकी सालाना आय 10,00,000 रुपये है। घर का अधिकतम मूल्य = 2.5 × 10,00,00) = 25,00,000 रुपये तक होना चाहिए। इससे अधिक कीमत की घर खरीदना आपकी जेब पर भारी पड़ सकता है।
7) 28% हाउसिंग EMI नियम
पॉश इलाके में प्रतिष्ठित बिल्डर से बड़ा घर लेना हर किसी को सपना होता है। लेकिन सभी को अपनी आमदनी के अनुरूप लोन पर घर खरीदने की एक सीमा होती है। फाइनेंस एक्सपर्ट के अनुसार आपकी होम लोन आपके मासिक आमदनी के 28% से अधिक नहीं होना चाहिए। यह नियम आपकी असल में अफोर्डेबल घर खरीदने में मदद कर सकता है। अपनी मासिक आमदनी से 28% के ज्यादा EMI चुकाने से आप पर कर्ज का भारी बोझ पड़ सकता है। वैसे भी रॉबर्ट कियोसाकी के अनुसार घर एक लायबिलिटी है, एसेट नहीं है। इसलिए इसे सोच समझ कर ही खरीदें।
अधिकतम मासिक होम लोन (EMI) = कुल मासिक आय का 28%
उदाहरण के लिए आपकी मासिक आमदनी 50,000 रुपये है तो होम लोन की अधिकतम EMI = (50,000 × 28%) = 14,000 रुपये होना चाहिए।
8) 36% ऋण नियम
यदि आप अपनी जरूरत से ज्यादा कर्ज लेते है तो आप कर्ज के जाल में फंस सकते है। इसलिए हमें 36% ऋण नियम का कड़ाई से पालन करना चाहिए। यानी हमें कोई भी लोन जैसे होम लोन, कार लोन या पर्सनल लोन अपनी इनकम का 36% से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
अधिकतम मासिक ऋण (EMI) भुगतान = कुल मासिक आय का 36%
मान लीजिए आपकी मासिक आमदनी 50,000 रुपये है तो आपकी कुल मासिक लोन की EMI (50,000 × 36%) = 18,000 रुपये से अधिक नहीं होना चाहिए।
9) रिटायरमेंट कॉर्पस नियम
हर कोई चाहता है कि रिटायरमेंट की बाद जीवन शांतिपूर्ण और आर्थिक रूप से तनाव मुक्त रहे। लेकिन इसके लिए प्लानिंग करना होता है। फाइनेंस एक्सपर्ट मानते है कि हमें अपने रिटायरमेंट के लिए कम उम्र में ही बचत व निवेश शुरू कर देना चाहिए। एक अच्छा रिटायरमेंट कॉर्पस के लिए हमें अपने वार्षिक आय का 20 गुना पैसा इकट्ठा करना चाहिए। तभी हमारा जीवन उस समय के अनुसार अच्छे से गुजर बसर हो पायेगा।
रिटायरमेंट कॉर्पस = कुल वार्षिक आय x 20
उदाहरण के लिए, मान लें कि आपकी वार्षिक आय 10 लाख (10,00,000) रुपये है, तो आपकी वर्तमान जीवन शैली को बनाए रखने के लिए आपका रिटायरमेंट कॉर्पस कम से कम (10 लाख X 20) = 1 करोड़ रुपये होना चाहिए।
10) 100 - आयु = इक्विटी का नियम
इस नियम का उपयोग निवेश में संपत्ति आवंटन (Asset Allocation) के लिए किया जाता है। अपने पोर्टफोलियो का कितना हिस्सा इक्विटी में आवंटित किया जाना चाहिए, यह जानने के लिए अपनी आयु को 100 से घटा कर कर सकते है।
उदाहरण के लिए, यदि आपकी आयु 30 वर्ष है तो आपको (100-30) = 70% हिस्से को इक्विटी में और बाकी बचे 30% हिस्से को डेब्ट में इन्वेस्ट करना चाहिए। इसी प्रकार, यदि आपकी आयु 60 वर्ष है तो आपको (100-60) = 40% हिस्से को इक्विटी में और बाकी बचे 60% हिस्से को डेब्ट में इन्वेस्ट करना चाहिए।
आयु 30 पर एसेट एलोकेशन = इक्विटी 70% + डेब्ट 30%
आयु 60 पर एसेट एलोकेशन = इक्विटी 40% + डेब्ट 60%
11) कंपाउंडिंग की समझ
यदि आप 4000 रुपये मासिक किसी म्यूच्यूअल फण्ड में 30 साल तक निवेश करते है, जो कम से कम 12% CAGR की रिटर्न दे। तो 30 साल बाद आपकी कैपीटल लगभग 1,23,00,000 रुपये होगी। यह सब कंपाउंडिंग के शक्ति से संभव है। निवेश और फाइनेंस के क्षेत्र में कंपाउंडिंग शायद सबसे शक्तिशाली अवधारणा है। इसे समझना आसान है, इसे मूलधन पर अर्जित ब्याज के साथ-साथ संचित ब्याज के कारण निवेश के मूल्य में वृद्धि के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, यदि आपके पास 1000 रुपये हैं और ब्याज में 10% कमाते हैं, तो आपके पास साल के अंत में 1100 रुपये हैं। फिर दूसरे वर्ष में, यदि आप उस पर 10% ब्याज अर्जित करते हैं, तो दूसरे साल के अंत में 1210 रुपये होंगे और इसी तरह जितने वर्ष तक निवेश करते है, उसी के हिसाब से आपके कैपिटल में बढ़ोतरी होगी।
कंपाउंडिंग की पावर को समझकर हम लंबे समय में रियल स्टेट, शेयर मार्केट और म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश कर बड़ा लाभ कमा सकते है। कंपाउंडिंग की शक्ति आपके निवेश को अंकगणितीय दर (सीधी रेखा) के बजाय एक घातीय दर से बढ़ाकर काम करती है।
12) इन्सुरेंस की समझ
बहुत से लोग जीवन बीमा पॉलिसी को इन्वेस्टमेंट के रूप में ख़रीदते है, जो कि बिल्कुल गलत है। इन्सुरेंस और इन्वेस्टमेंट में बहुत अंतर है। इन्वेस्टमेंट में हम पैसों से पैसा बनाते है, जबकि इन्सुरेंस किसी गंभीर बीमारी, अपंगता या असामयिक मृत्यु पर फैमिली के लिए एक फाइनेंसियल सपोर्ट के रूप में काम करता है। एक परिवार में जिनके ऊपर आर्थिक जिम्मेदारी है, उन्हें एक टर्म लाइफ इन्सुरेंस और पूरे परिवार के लिए एक हेल्थ इन्सुरेंस जरूर खरीदना चाहिए।
टर्म इन्सुरेंस बहुत ही कम प्रीमियम पर बहुत बड़ा लाइफ कवरेज प्रदान करता है। 25 साल की उम्र के लिए 1 करोड़ तक का टर्म इन्सुरेंस आपको 500 से 1,000 रुपये तक मासिक प्रीमियम पर मिल जाता है। साथ ही हेल्थ इन्सुरेंस इसलिए जरूरी क्योंकि किसी बड़ी मेडिकल इमरजेंसी के समय हेल्थ इन्सुरेंस नहीं होने से आपकी पूरी जमा पूंजी एक ही झटके में समाप्त हो सकती है और साथ ही आपके ऊपर कर्जे भी बढ़ सकते है। इसी तरह हमें बाइक, कार, और महंगी चीजों की भी इन्सुरेंस करा लेनी चाहिए।
13) बेड लोन और गुड लोन की समझ
यदि हम अपनी शौक और इच्छाओं जैसे कि कार, बाइक, टीवी, फर्नीचर, मोबाइल आदि को खरीदने के लिए लोन लेते है तो ये बेड लोन की श्रेणी में आता है। क्योंकि ये ऐसी चीजें होती है जो समय के साथ इनकी कीमत भी कम होती जाती है और इनके रखरखाव में भी खर्च करना पड़ता है। जैसे हम एक कार लोन पर खरीद लेते है, तो इसे चलाने के लिए EMI के साथ-साथ अलग से फ्यूल, इन्सुरेंस, मेंटेनेंस आदि पर भी खर्च करना पड़ता है और साथ ही यह जितनी पुरानी होती जायेगी, उतनी ही इनकी कीमत भी कम होती जाती है।
वहीं हम एक गुड लोन की बात करें तो इस लोन के द्वारा ऐसी चीज खरीद लेते है, जिनकी वैल्यू समय के साथ भी बढ़ते जाते है। जैसे किसी बिजनेस, मकान, दुकान, गोदाम, जमीन, गोल्ड, स्टॉक्स, म्यूच्यूअल फंड्स के यूनिट आदि खरीदने के लिए लोन गुड लोन की श्रेणी में आते है। ऐसी चीजों को खरीदने से हमें किराया और बेचने पर कैपिटल गेन मिल सकता है। ये सभी चीजें एसेट या संपत्ति के अन्तर्गत आते है, क्योंकि ये सभी चीजें हमारी जेब में पैसे डालती है। साथ ही साथ समय के साथ इनकी कीमत भी बढ़ती जाती है। इस तरह हमें बेड लोन और गुड लोन की समझ होना चाहिए।
14) टैक्स की समझ
पैसे कमाने और उसे बचाने के लिए टैक्स को समझना बहुत ज़रूरी है। अगर आर्थिक रूप से सफल बनना चाहते है तो आपको टैक्स को समझना और उसका फ़ायदा उठाना आना चाहिए। यदि आप टैक्स और उससे जुड़े सभी कानूनों को अच्छी तरह से सीखते व समझते है, तो आप अपना टैक्स कम कर सकते हैं।
इनकम टैक्स डिडक्शन सेक्शन जैसे 80C, 80CCC, 80CCD, 80D, 80DD, 80DDB, 80TTA, 80G, 80GG, 80E, 80EE, 80U आदि को विस्तार से समझ कर अपना टैक्स बचा सकते है। और साथ ही आप किसी फाइनेंसियल एडवाइजर की मदद भी ले सकते है।
15) बजट बनाना
बजट बनाना मतलब अपने आमदनी और खर्चों का हिसाब रखना होता है। बजट बनाने से आमदनी, खर्चें, बचत, निवेश, इन्सुरेंस आदि सभी चीजें स्पष्ट हो जाता है।
कई लोग बड़े-बड़े खर्चें की तो बजट बना लेते है, मगर छोटे छोटे खर्चों जैसे- पेपर बिल, मोबाइल बिल, सुपर मार्केट में कुछ पसंद की चीजों का बिल, खिलौने का बिल, चाय नास्ते का बिल आदि को इग्नोर कर देते है। जब आप इन्ही छोटे छोटे खर्चों का एक लिस्ट बनाएंगे और उसे काउंट करेंगे तो एक बड़ी राशि बनती है। इसलिए हमें सभी छोटे बड़े खर्चों का हिसाब रखना चाहिए।
सभी खर्चों का हिसाब रखने के लिए एक्सेल शीट या किसी मोबाईल एप्प का उपयोग कर सकते है। इससे आप अपने आमदनी और खर्चों को आसानी से ट्रैक कर सकते है। अपने आमदनी और खर्चों का आवश्यकतानुसार साप्ताहिक, मासिक, अर्धवार्षिक, वार्षिक बजट योजना बना सकते है। जिससे अपने पैसों का सही ढंग से उपयोग कर सके।
16) निवेश की समझ
ऐसे कई लोग है जो अपने मेहनत की कमाई को सेविंग करके अमीर बनना चाहते है, लेकिन यकीन मानिए आज तक कोई अपना पैसा बचा कर अमीर नहीं बने है। जो आज अमीर या आर्थिक रुप से सफल है, वे कहीं न कहीं अपना पैसा निवेश किये थे। निवेश नहीं करने से आपका पैसा समय के साथ ग्रो नहीं कर पाते है बल्कि और कम हो जाते है।
उदाहरण के लिए, समीर और रमेश दोनों के पास 1,00,000 रुपये है। समीर अपने पैसों को अपने पास ही संभाल कर रखता है और रमेश अपने पैसों को किसी म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश कर देते है, लेकिन म्यूच्यूअल फण्ड में मिलने वाला रिटर्न की गारंटी नहीं है। क्योंकि लगभग सभी प्रकार के निवेश जोखिम के अधीन है। 3 साल बाद समीर के पास 1,00,000 रुपये ही होता है, लेकिन मुद्रास्फीति के कारण उनकी क्रय शक्ति भी कम हो जाती है। भारत में मुद्रास्फीति की दर लगभग 6% सालाना है, यानी तीन साल बाद 1,00,000 रुपये लगभग 84,000 रुपये हो जायेगा। जबकि रमेश के पास 1,40,492 रुपये होता है, क्योंकि उनका म्यूच्यूअल फण्ड सालाना 12% की CAGR का रिटर्न दिया होता है। इस प्रकार दोनों के कैपीटल में 40,000 रुपये का अंतर होता है, जो कि बहुत बड़ा अंतर है। इस प्रकार हम निवेश की शक्ति को समझ सकते है। निवेश को सीख और समझकर ही अपने पैसों को ग्रो कर सकते है। आप अपने पैसों को गोल्ड, बांड, म्यूच्यूअल फण्ड, स्टॉक्स, रियल स्टेट, बिजनेस आदि में निवेश कर सकते है।
और अंत में,
उपरोक्त सभी बातें यदि ध्यान में रखते हुए पालन करते है, तो आप कभी भी आर्थिक रूप से संघर्ष नहीं करेंगे, बल्कि आर्थिक रुप से सफल और अमीर हो सकते है।
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