दोस्तों ऐसा माना जाता है कि मार्केट की चाल इलियट वेव थ्योरी (Elliott Wave Theory) के हिसाब से चलता है यानी मार्केट का ऊपर या नीचे जाने को इस थ्योरी के द्वारा आसानी से प्रेडिक्ट किया जा सकता है। हालांकि इलियट वेव एक इंडिकेटर के रूप में वर्गीकृत नहीं है, लेकिन ये टेक्निकल एनालिसिस में काफी लोकप्रिय है। इसके सिद्धांत पर कई पुस्तकें लिखी गई हैं, यहाँ इस लेख का उद्देश्य थ्योरी की मूल बातें शामिल करना है। तो चलिए इस लेख में इलियट वेव थ्योरी के बारे में जानते हैं।
इलियट वेव थ्योरी स्टॉक मार्केट में टेक्निकल एनालिसिस का एक टूल है। यह स्टॉक्स, फ्यूचर एंड ऑप्शन, करेंसी, कमोडिटी, क्रिप्टो आदि सभी प्रकार के टेक्निकल चार्ट में काम करता है। साथ ही यह हर प्रकार के टाइम फ्रेम (जैसे - 1m, 5m, 15m, 1h, 1d, 1w etc.) में काम करते है। इलियट वेव थ्योरी का नाम राल्फ नेल्सन इलियट (Ralph Nelson Elliott) के नाम पर रखा गया है। वह एक अमेरिकी अकाउंटेंट और लेखक थे। डॉव थ्योरी से प्रेरित और पूरे प्रकृति के अवलोकन से इलियट ने निष्कर्ष निकाला कि स्टॉक मार्केट की मूवमेंट की भविष्यवाणी वेव्स (Waves) के दोहराव वाले पैटर्न को देखकर पहचान किया जा सकता है।
इलियट वेव थ्योरी (Elliott Wave Theory) क्या है?
इलियट वेव थ्योरी डॉव थ्योरी पर आधारित है। डॉव थ्योरी के अनुसार मार्केट में तीन तरह के मूवमेंट होता है- पहला अपट्रेंड, दूसरा डाउनट्रेंड और तीसरा साइडवेज। इलियट ने इन्ही ट्रेंडो को एक पूर्ण चक्र के रूप में लेबल किया है और ये चक्र समय के साथ दोहराते रहते है। इलियट का मानना था कि अधिकतर ट्रेडर्स और इन्वेस्टर की साइकोलॉजी एक ही समय में लगभग एक समान व्यवहार करते है और यह व्यवहार एक विशिष्ट पैटर्न में दिखाई देता है। जैसे कोई इन्वेस्टर या ट्रेडर्स आशावादी और लालच में हो तो मार्केट तेजी (बुलिस) में दिखाई देता है और यदि वही इन्वेस्टर या ट्रेडर्स निराशावादी और डरे हुए हो तो मार्केट मंदी (बेयरिस) में दिखाई देता है। इसी वजह से मार्केट में कभी तेजी से खरीदारी होती है या कभी तेजी से बिकवाली होती है। इस प्रकार किसी ट्रेडर्स और इन्वेस्टर के बदलते साइकोलॉजी को एक पैटर्न के रूप में पहचान किया जा सकता है और यह पैटर्न अक्सर दोहराये जाते है।
स्टॉक मार्केट के कई वर्षों के अवलोकन और अध्ययन यह से निष्कर्ष निकाला गया है कि
1) मार्केट किसी बाहरी घटनाओं पर लगातार प्रतिक्रिया नहीं करते है।
2) यह एक वेव्स के रूप में प्रकट होता है। इन वेव्स में दोहराव पाये गये है।
इलियट वेव थ्योरी से दोहराव वाले वेव्स (Waves) को लेबल करके मार्केट के संभावित अगले कदम का अनुमान सटीकता से लगाया जा सकता है।
इलियट वेव थ्योरी का सिद्धांत (Principle of Elliott Wave Theory)
इलियट वेव थ्योरी वेव्स या तरंगों (लहरों) के दोहराव वाली पैटर्न पर आधारित है। इस थ्योरी के अनुसार, मार्केट की चाल बड़े पैमाने पर एक मनोवैज्ञानिक समान प्रवृत्ति (Trend) वाले पैटर्न को दर्शाती है। यह चाल 5-3 वेव्स के रूप में दिखाई देता है यानी हर ट्रेंड के अंदर यही 8 चक्र पाया जाता है। 5 वेव्स मुख्य प्रवृत्ति (Trend) में 1, 2, 3, 4, 5 के रूप में गति करती है, जिसे आवेगी या इम्पलसिव वेव्स (Impulsive Waves) कहते है। 3 वेव्स सुधारात्मक चरण A, B, C के रूप में गति करती है, जिसे सुधारात्मक या करेक्टिव वेव्स (Corrective Waves) कहते है।
प्रत्येक वेव के अंदर छोटे वेव्स भी बनते है, जो पूर्ण चक्र में होते है। प्रत्येक छोटे वेव्स के अन्दर और छोटे वेव्स बनते है, ये सिलसिला ऐसे ही चलते रहते है। यानी इम्पलसिव वेव्स के अन्दर एक पूर्ण इम्पलसिव वेव्स और करेक्टिव वेव्स के अन्दर एक पूर्ण करेक्टिव वेव्स बनते है। हम यहाँ इन वेव्स को बुलिश (तेजी) मार्केट के अंतर्गत वर्णन कर रहे है।
इलियट वेव थ्योरी के नियम (Laws of Elliott Wave Theory)
1) Wave 2 कभी भी Wave 1 के नीचे नहीं जाना चाहिए।
2) Wave 3 कभी भी Wave 1 और Wave 5 से छोटी नहीं हो होना चाहिए।
3) Wave 4 कभी भी Wave 1 को Overlap नहीं करना चाहिए अर्थात Wave 4 कभी भी, Wave 1 के हाई को टच नहीं करना चाहिए।
इम्पलसिव वेव्स (Impulsive Waves)
इम्पलसिव वेव्स बुलिश (तेजी) मार्केट में ऊपर की ओर और बेयरिस (मंदी) मार्केट में नीचे की ओर बनते है।
बुलिश (तेजी) मार्केट में इम्पलसिव वेव्स तब बनती है जब मार्केट में Buying प्रेसर आता है। यह वेव्स, 5 सबवेव्स (Sub waves) 1, 2, 3, 4, 5 से बना होता है। इसमें वेव्स 1, 3, 5 इम्पलसिव वेव्स और वेव्स 2, 4 करेक्टिव वेव्स होते है।
विभिन्न वेव्स की अपनी एक विशेषता होती है। इन वेव्स की एनालिसिस से ट्रेडर और इन्वेस्टर की मनोविज्ञान (Psychology) को समझा जा सकता है। यहाँ हम 5-3 वेव्स को मार्केट के बुलिश (तेजी) की स्थिति में समझ रहे है।
Wave 1: इस वेव को पहचानना मुश्किल होता है। यह वेव तब दिखाई देती है जब मार्केट में शुरुआती तेजी आती है। निवेशक को लगता है कि मार्केट में अब बुलिश आने वाले है।
Wave 2: यह वेव अपने शुरुआती Wave 1 के निचले स्तर को तोड़ नहीं सकता है। निवेशक को लगता है अब प्राइस ओवर वैल्यू हो चुका है, अब प्रॉफिट बुक कर लेना चाहिए।
Wave 3: यह वेव तब बनती है जब मार्केट में बहुत ही ज्यादा Buying प्रेसर आता है। लोग इन्वेस्ट करते जाते है और स्टॉक प्राइस बढ़ते जाते है। यह वेव सबसे लंबी होती है साथ ही यह Wave 1 के हाई को तोड़ता है।
Wave 4: इसके बाद बहुत सारे निवेशक को लगता है कि अब स्टॉक ओवर वैल्यू हो चुका है और इस तरह वे प्रॉफिट बुक करने लगते है। Wave 4 कभी भी Wave 1 को Overlap नहीं करता है।
Wave 5: यह वेव खतरे का संकेत है, इसमें बहुत सारे निवेशक ऐसे होते है जो बिना सोचे समझे निवेश करते है। इस वेव में कई निवेशक किसी स्टॉक को Buy करने के लिए पागल हो जाते है। इस वेव में निवेशक को लगता है कि अब प्राइस इस बॉटम लेवल से ऊपर जाएगा। यह वेव, Wave 3 के हाई को तोड़ता है।
करेक्टिव वेव्स (Corrective Waves)
करेक्टिव वेव्स बुलिश (तेजी) मार्केट में नीचे की ओर और बेयरिस (मंदी) मार्केट में ऊपर की ओर बनते है।
बुलिश (तेजी) मार्केट में करेक्टिव वेव्स तब बनती है जब मार्केट में Selling प्रेसर आता है। यह वेव तीन सबवेव्स (Sub Waves) A, B, C से बना होता है। ये वेव मार्केट में करेक्शन लेकर आता है।
Wave A: इस वेव को पहचानना कठिन होता है। इस वेव में अधिकांश विश्लेषक गिरावट को बुल मार्केट में सुधार के रूप में देखते है।
Wave B: इस वेव में निवेशक बुलिश आने की और आशा करते है मतलब अभी भी वे मार्केट को नकारात्मक नहीं लेते है। Wave B एक रैली होती है लेकिन Wave 5 की हाई को नहीं तोड़ सकता।
Wave C: इस वेव में मंदी या बेयरिस और अधिक मजबूती से आती है। Wave C आम तौर पर कम से कम Wave A जितना बड़ा होता है और अक्सर 1.618 गुना Wave A या उससे अधिक तक फैलता है। इसे Wave A के लो लेवल को तोड़ना चाहिए।
एलियट ने 21 प्रकार के करेक्टिव वेव्स का जिक्र किये है, जिसमें महत्वपूर्ण करेक्टिव वेव्स पैटर्न है- जिगजैग (Zigzag), फ्लैट (Flat), ट्रायंगल (Triangle) आदि।
जिगजैग (Zigzag)
जिगजैग (Zigzag)
जिगजैग एक इम्पलसिव वेव्स के 3 स्ट्रक्चर होते है, जिसे A, B, C के रूप में लेबल किया जाता है। वेव्स A और C के 5 सबवेव्स और वेव B के 3 सबवेव्स होते है। यह एक 5-3-5 का स्ट्रक्चर होता है।
फ्लैट (Flat)
फ्लैट (Flat)
एक फ्लैट 3 वेव्स का करेक्टिव चाल है, जिसे A, B, C से लेबल किया जाता है। इसका स्ट्रक्चर 3-3-5 होता है। ये Regular, Irregular और Running Flats संरचना में होते है।
ट्रायंगल (Triangle)
ट्रायंगल (Triangle)
एक ट्रायंगल घटती मात्रा और अस्थिरता से जुड़ा होता है। ट्रायंगल में 5 भुजाएँ होती हैं और प्रत्येक भुजा 3 वेव्स में विभाजित होती है जिससे 3-3-3-3-3 संरचना बनती है। इलियट वेव थ्योरी में 4 प्रकार के ट्रायंगल हैं: Ascending, Descending, Symmetrical, और Reverse Symmetrical. करेक्टिव स्ट्रक्चर को A, B, C, D, E के रूप में लेबल किया जाता है।
फिबोनाची रेश्यो और एलियट वेव में संबंध (Relationship between Fibonacci Ratio & Elliott Wave)
एलियट वेव की स्ट्रक्चर में वेव्स की चाल के लक्ष्य को मापने के लिए फिबोनाची रेश्यो का उपयोग किया जाता है। इलियट वेव स्ट्रक्चर में विभिन्न वेव्स फिबोनाची रेश्यो के साथ एक दूसरे से संबंधित होती हैं। उदाहरण के लिए,
• Wave 2 = Wave 1 का 50%, 61.8%, 76.4%, या 85.4% होता है।
• Wave 3 = Wave 1 का 161.8% या 261.8% होता है।
• Wave 4 = Wave 3 का 14.6%, 23.6%, 38.2% या 61.8%
• Wave 5 = Wave 4 का 161.8% या Wave A का 100%
• Wave B = Wave A का 50%, 61.8%, 76.4% या 85.4%
• Wave C = Wave A का 61.8%, 100% या 123.6%
ट्रेडर्स और इन्वेस्टर उपरोक्त जानकारी का उपयोग ट्रेड करते समय कर सकते है और साथ ही किसी ट्रेड में एंट्री करते समय एंट्री पॉइंट और एग्जिट पॉइंट (स्टॉप लॉस या टारगेट पॉइंट) को भी सेट कर सकते है।
यहाँ केवल अपट्रेंड को ध्यान में रखकर इलियट वेव थ्योरी को समझाया गया है। याद रखे कि इलियट वेव थ्योरी अपट्रेंड के साथ साथ इसके ठीक उलट डाउन ट्रेंड में भी वैसे ही काम करता है।
और अंत में,
इलियट वेव थ्योरी को केवल मार्केट की भविष्य की संभावना पता कर सकते है। ऐसा नहीं कि इस थ्योरी के द्वारा एकदम सटीक अंदाजा लगाया जा सकता है। चार्ट में कोई वेव दिखाई नहीं देता है, बल्कि खुद से चार्ट में वेव के लिए लेबल करना होता है। चार्ट में लेबल लगाने के लिए प्रैक्टिस करना होता है। जैसे जैसे प्रैक्टिस होता जायेगा वैसे ही आप वेव पहचानने में सक्षम होते जायेंगे। कई सॉफ्टवेयर भी डेवेलोप हो चुके है, जो चार्ट में ऑटोमैटिक इलियट वेव्स बना देते हैं। ध्यान रहे कि सिर्फ इलियट वेव थ्योरी के सहारे ट्रेडिंग या इंवेस्टिंग करना काफी जोखिम भरा हो सकता है। इलियट वेव के साथ कैंडलस्टिक, सपोर्ट एंड रेजिस्टेंट, RSI, MACD, EMA, Stochastic आदि का जिसमें भी आप कम्फर्ट समझे उसे उपयोग कर सकते है। हमें ज्यादा से ज्यादा एक ही समय मे 2 से 3 इंडिकेटर ही उपयोग करना चाहिए, 3 या 4 से अधिक इंडिकेटर होने पर हम खुद ही कंफ्यूज हो सकते है।
उम्मीद है दोस्तों आपको इलियट वेव थ्योरी क्या है? आसानी से समझ आया होगा। इसे और विस्तार से समझने के लिए बुक्स और ऑनलाइन कोर्स का सहारा ले सकते है। ऐसे ही स्टॉक मार्केट और फाइनेंसियल नॉलेज के लिए हमारे ब्लॉग को पढ़ते रहिये।
धन्यवाद!
Happy Investing!